सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री, हिंदुस्तान ।
दिनांक:-06 जुलाई 2016
विषय:-2011 से साक्ष्य कानून में परिवर्तन की मेरी मांग और वर्तमान में
साक्ष्य कानून में परिवर्तन की आवश्यकता के मद्धेनज़र कानून में बदलाव करने हेतु ।
महाशय,
निवेदनपूर्वक याद दिलाना चाहता हूँ कि वर्ष 2011 में आपकी पार्टी (बी०जे०पी०)
द्वारा समर्थित अन्ना हजारे का जनलोकपाल के लिए राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के क्रम में
पार्लियामेंट की बी०जे०पी० युक्त स्टैंडिंग कमिटी ने आम व ख़ास से जनलोकपाल पर
सुझाव माँगा था और सुझाव देने वालों में एक मैं भी शामिल था ।
विभिन्न राजनीतिक दलों व
उनके सांसदों (ak.antony@sansad.nic.in, governorbihar@nic.in, oscar@sansad.nic.in, kapilsibal@hotmail.com, behari@sansad.nic.in, speakerloksabha@sansad.nic.in rjdal@rediffmail.com, office@rahulgandhi.in, manmohan@sansad.nic.in, jdwivedi@sansad.nic.in
के साथ सभी दलों के संसद
में अध्यक्ष (स्पीकर:-speakerloksabha@sansad.nic.in) को मैंने अपने पत्र में निम्नलिखित सुझाव और मांगे रखी थी जिसमें से कानून
की संख्या को कम करने के एक अति महत्वपूर्ण सुझाव पर अमल करते हुए आपने उसे तर्क
और तत्परतापूर्वक लागू भी किया परन्तु मेरी कुछ अन्य निम्नलिखित मांगों पर
निर्णायक विचार आपेक्षित है
1.
न्यायलय में मुकदमों की
सुनवाई के दौरान विज्ञान और तकनीकों का इस्तेमाल ।
2.
गवाहों द्वारा न्यायलय में
अनेकों बार गवाही देने की कुप्रथा को कम करना ।
3.
गवाहों द्वारा गवाही की
अनिवार्यता को कमजोर करना ।
4.
पल-पल ब्यान बदलने वाले
गवाहों पर अदालतों की निर्भरता को वैकल्पिक बनाना ।
5.
कागज़ी व अन्य इस प्रकार के
सबूतों पर अदालतों की आपेक्षा और निर्भरता कम करना ।
6.
मुकदमों में प्रमाणिकता और
साक्ष्य के लिए वैज्ञानिक तरीकों (नार्को टेस्ट, पोलीग्राफिक, लाई-डिटेक्टिंग
टेस्ट, साइकाट्रिस्ट टेस्ट, का वृहत पैमाने इस्तेमाल करना व अन्य ।
माननीय उच्चतम न्यायालय और डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस द्वारा 05 नवम्बर 2015 को
कोलेजियम सिस्टम में बेहतरी के लिए अधिकारिक सुझाव मांगी गयी थी जिसके आलोक में
मैंने कोलेजियम सिस्टम को बेहतर बनाने के साथ अपने विभिन्न सुझावों में से एक
न्यायपालिका में विज्ञान और तकनीक को बढ़ावा देना सुझाया था जिसे आपने पटना उच्च
न्यायालय के शताब्दी समारोह के समापन समारोह के मंच से मेरे द्वारा माननीय उच्च
न्यायलय और डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस को DARPG- DEPOJ/E/2015/01633 के माध्यम दिए गए सुझाव को
अपनाने की घोषणा की थी और कहा कि न्यायपालिका को हाईटेक होना चाहिए ।
अन्य राज्यों की तरह बिहार में अपराध करने वालों को छोड़ा नहीं जा रहा है हाल
में हुयी सभी घटनाओं में सभी अभियुक्तों चाहे वह सत्ताधारी दल के राजनेता हीं
क्यों न को जेल के अन्दर भेजा गया है किन्तु साक्ष्य कानून की खामियों का लाभ
उठाकर वे लोग कानून को ठेंगा दिखने में सफल हो रहे हैं । बिहार में विपक्ष के लोग
जिसमें बी०जे०पी० भी शामिल हैं कहती है सरकार की कमजोर इच्छा शक्ति के कारण अपराधी
छूट जाते हैं पर ऐसा नहीं है क्योंकि वर्तमान साक्ष्य कानून में बड़े पैमाने पर
सुधार की आवश्यकता है जो केन्द्रीय सरकार के पहल पर हीं संभव हैं राज्य सरकार के
स्तर पर नहीं ।
अतः श्रीमान से प्रार्थना है कि साक्ष्य कानून में बदलाव के लिए 2011 से
लगातार मेरे सुझाव पर अमल करने की कृपा की जाये और राज्य के साथ देश में भी अपराधियों
को कानून का भय हो ।
प्रतिलिपि प्रेषित:-माननीय राष्ट्रपति, भारत ।
आपका
ह०/-प्रभाष चन्द्र शर्मा
पद्मा अवार्ड नॉमिनी (समाज सेवा श्रेणी)
पत्रकार (हिंदी दैनिक अखबार)
कार्यकारिणी सदस्य सह मीडिया प्रभारी (जर्नलिस्ट्स
यूनियन ऑफ बिहार)
कार्यकर्ता (सुचना का अधिकार)
कार्यकर्ता (बिहार मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान)
समाज सुधारक
पता:-पत्रकार सदन, पहलवान घाट,
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(भारत)
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