सेवा में,
माननीय
प्रधानमंत्री, हिंदुस्तान ।
माननीय मुख्यमंत्री,
बिहार (भावी प्रधानमंत्री, भारत)
दिनांक:-15 फ़रवरी
2015
विषय:-न्यायालय में
मुकदमों की समय सीमा निर्धारित करने के सम्बन्ध में ।
महोदयगण,
निवेदनपूर्वक कहना
है कि देश की बुराइयां और उसे दूर करने में सरकार की लाचारी के पीछे मुख्य रूप से
एकमात्र सुस्त न्यायिक प्रक्रिया है जिसे ठीक किये बगैर देश को स्वस्थ, शिक्षित,
समृद्ध और सुरक्षित बनाने की बात करना किसी बहलावा और लोगों को गुमराह करने से कम
नहीं है ।
हमारा देश इस कारण
अस्वस्थ नहीं है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सम्बन्धी मौलिक सुवधाओं की कमी है
बल्कि हमारा देश इसलिए अस्वस्थ है क्योंकि स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को पहुँचाने
वाले कर्मचारी और अधिकारी बेईमान होते हैं या बेईमान होने के लिए उन्हें बाध्य
किया जाता हैं जिसके पीछे बेईमानी या बेईमानी के लिए बाध्य करने वालों की शिकायत की
जानी है वो न्यायालय स्वयं न्याय के लिए सार्वजानिक रूप से दर-दर की ठोकर खा रहा
है जिसके प्रमाण के लिए न्यायाधीशों द्वारा न्याय के लिए संवाददाता सम्मलेन बुलाये
जाने का ताज़ा उदहारण पर्याप्त है । ऐसी हीं बदहाली स्वाथ्य विभाग के साथ अन्य
विभागों में विधमान हैं । जो भी सख्स बेईमानी के खिलाफ लड़ने की हिम्मत जुटाकर
न्यायलय का दरवाजा खटखटाता है लोग उसे अनुचित या विलम्ब से न्याय नहीं मिलने का
सैकड़ों उदहारण देकर मानसिक रूप से असंतुलित या पागल की संज्ञा देने में तनिक भी
देरी नहीं किया जाता है । बुजुर्गों और अनुभवी अधिकारीयों द्वारा पागल की संज्ञा प्राप्त
करने के बाद भी जो न्यायपालिका में न्याय की लड़ाई लड़ने का साहस जुटाते हैं और
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पुलिस और न्यायपालिका में चरणबद्ध भ्रष्टाचार,
प्रताड़ना, अपमान और इसके कारण स्वास्थीय-पीड़ा झेलते हैं उन्हें भी सुस्त
न्यायपालिका से जीवन काल में उचित न्याय नहीं मिल पाता है । वास्तविकता यह है कि पुरे
देश के तंत्र को झोंक कर भी सामान्य रूप से सामान्य न्याय पाने वालों का पता लगाने
की कोशिश की जाये तब भी किसी दो-या चार पन्ने को फोल्डर प्रमाणिक रूप से तैयार
नहीं किया जा सकता है ।
आश्चर्य की बात नहीं
है कि लोग न्याय के लिए पुलिस और न्यायलय में नहीं जाकर किसी स्थानीय गुंडे या
दलाल के पास जाना अपना सौभाग्य समझते हैं क्योंकि उन जगहों और वैसे व्यक्तियों से कुछ
मिले या ना मिले कम से कम मामले में फैसला तो मिल हीं जाता है जिसका प्रमाण है कि
खाप-पंचायत या गुंडों, उग्रवादियों, नक्सालियों एवं असभ्य लोगों द्वारा भारत जैसे
महान और नियम कानून वाले देश की छाती पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जनसमर्थन से “जन-अदालत”
चलाया जा रहा है और ये सच्चाई देश और दुनिया किसी से छिपी हुई नहीं है ।
केंद्र और अनेकों
राज्यों की सरकारें न्याय देने के लिए नए-नए नियम और कानून बनाकर जनता को तय समय
पर न्यूनतम मात्र में संतोषजनक न्याय देने का प्रयास या कम से कम नाटकीय प्रयास हीं
कर रही है जिससे लोगों में अज्ञानता के कारण हीं सही लेकिन लोगों में सांकेतिक
संतोष का भाव झलकता प्रतीत होता है ।
जबतक न्यायपालिका और
न्यायिक प्रक्रिया को वृहत और मुख्य धारा से नहीं जोड़ा जाएगा हमारा देश गारंटीपूर्वक
स्वस्थ, शिक्षित, समृद्ध और सुरक्षित नहीं बन सकता है जिसके लिए सर्वप्रथम
न्यायपालिका में मुकदमों के निबटारे लिए निश्चित समय-सीमा तय किया जान अनिवार्य है
जिस काम में थोडा भी विलम्ब का मतलब है कि देश को गारंटीपूर्वक अस्वस्थ, अशिक्षित,
बदहाल और असुरक्षित रखने की गुप्त और संयुक्त योजना को मूर्त रूप में रखा जाने का
प्रयास किया जा रहा है जो अकाल्पनिक, अविश्वसनीय और निंदनीय है ।
अतः श्रीमान् से
निवेदन है कि न्यायपालिका में मुकदमों के निबटारे के लिए मुकदमों की गंभीरता के
अनुरूप चरणबद्ध तरीके से निबटारे की समय-सीमा तय करना सुनिश्चित करने की कृपा की
जाये और देश को बाहर से हीं नहीं बल्कि अन्दर से और व्यक्तिगत रूप से सशक्त बनाने
में सहयोग करने की कृपा की जाये क्योंकि देश पर माननीयों के अलावा अन्य लोगों का
भी हक़ और अधिकार है ।
आपका विश्वासी
ह०/-प्रभाष चन्द्र शर्मा
पद्मा अवार्ड नॉमिनी (समाज सेवा वर्ग)
वरीय पत्रकार (दैनिक हिंदी अखबार)
सची सह मीडिया प्रभारी (इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वोर्किंग जर्नलिस्ट्स,
बिहार)
कार्यकर्ता (सूचना का अधिकार)
कार्यकर्ता (मानवाधिकार)
पता:-पत्रकार सदन, पहलवान घाट,
थाना-बुद्धा कॉलोनी, पटना, बिहार-800001
PMO 15-02-2018 Complaint Number- PMOPG/E/2018/00716866
CPGRAMS 15-02-2018 Complaint Number- DARPG/E/2018/022299
CPGRAMS 15-02-2018 Complaint Number- GOVBH/E/2018/002899